Tuesday 26 February 2013

कुछ तुम बोलो कुछ मैं बोलूँ ।

कुछ तुम बोलो कुछ  मैं बोलूँ
क्यों मध्य पड़ी गहरी गाँठे
कर आगे कर मिलकर खोलूँ
कुछ तुम बोलो कुछ मैं बोलूँ ।

क्यों छोटा गड्ढा जन्म लिया
धीरे - धीरे यह क्यों पसरा
यह पता नहीं तुम क्यों बिफरे
यह भी न पता मैं क्यों अकड़ा,
गड्ढे का कीचड़ चादर पर
आओ मिलकर उसको धो लूँ ।
कुछ तुम बोलो कुछ मैं बोलूँ ।

निराशा और घृणा की बदली
बादल बन मुझको घेर रखा
तेरी आशाएँ ध्वस्त हुई
मैं भी तुमसे कुछ कह न सका,
बदली बरसे आँसू बनकर
मिलकर आओ पलभर रो लूँ ।
कुछ तुम बोलो कुछ मैं बोलूँ ।

तू दोष मढ़े मेरे सिर पर
तुमको जब मुझसे द्वंद्व हुआ
लेकिन यह भूल तुम्हारा है
मुझमे भी अन्तर्द्वन्द्व हुआ,
मत लाश को ला देगी बदबू
आ खुद को खुद से ही तोलूँ ।
कुछ तुम बोलो कुछ मैं बोलूँ ।

मैं भी यायावर तू भी है
कुछ दिन तो साथ रहना होगा
क्यों बैर बढ़े तुम भी सोचो
सुख - दुःख भी बाँट सहना होगा,
सब लोग रहेंगे हँसी ख़ुशी
आ सुन्दर सपने संजो लूँ ।
कुछ तुम बोलो कुछ मैं बोलूँ ।




Saturday 16 February 2013

निःश्चल सज्जनता


राहें सूनी है दूर - दूर 
सब छोड़  मुसाफिर चले गए,
और सज्जनता उपहास बना 
जब - तब देखो हम छले गए ।

अनजान डगर पर निकले थे,
थे दिल के  हम भोले - भाले,
वह चोर लुटेरा ठग निकला 
जिस - जिसको समझे रखवाले,
सब करते रहे कंदुक - क्रीडा 
मच्छर की भाँति मले गए ।

यह सज्जनता और भोलापन 
अब अवगुण कहते सब जग में,
पर सोच मुसाफिर दुर्जन तो 
मिलते ही रहेंगे पग - पग में,
जब दृढ दुर्जन दुर्जनता पर 
तो मैं सज्जनता क्यों छोडूँ,
जाने दो मलो नहीं हाथ कभी 
यह सोच सही है भले गए ।



Monday 4 February 2013

अरे हिमालय बता मुझे



अरे हिमालय बता मुझे
ये क्या होता है?
गंगा यमुना बहती है,
या तू रोता है?

गंगा धार बनी है किसकी याद बता,
किसकी यादें रही अभी तक तुझे सता,

तुम किस आशा में चिरकालों से हुए खड़े,
झंझा - तूफान, गर्जन - तर्जन से लड़े - अड़े,

किस विरहा में धीरे - धीरे घुले जा रहे,
किसकी यादों में स्वंय भूले जा रहे,

तुम्हे नहीं पता गंगा की धारों में
हँस - हँस लोग पाप धोते हैं,
इधर किसी का घर जलता है
और कोई हाथ सेते हैं।

यह मेरी वाणी जब तक गंगा धार
सिन्धु में नाद रहेगी,
दुनिया तेरी विरह कथा को याद करेगी।

है मुझे पता यदि कोई ऐसे धीर बनेगा ,
प्रेम मिले न मिले प्रेम की पीर बनेगा।