मेरे टूटे कंधो पर अपना मस्तिष्क टिका दो
मेरी सूनी अंखियों में तारों सी ज्योति जगा दो,
विश्वास नहीं टूटे ये मोरों का नभ के ऊपर
बिजली चमकी बरसो हे अम्बर के बादल भू पर|
जब हवा चली सन-सन से खन-खनके हुआ मन कंगना
संकेत मिला आओगे लीपा खुद से ही अंगना,
अंतर की सृष्टि हलचल कर दी हवा ने है छू-छूकर
बिजली चमकी बरसो हे अम्बर के बादल भू पर|
सूरज निकला अंतर में फिर भी अंधियारी छाई
जीवन की फिसलन पथ पर देखो जमी है मोटी काई,
पग पड़ता जहाँ कही भी बस दिखता है मरुस्थल
बिजली चमकी बरसो हे अम्बर के बादल भू पर|