राहे सूनी सब दूर - दूर
सब छोड़ मुसाफिर चले गए,
और सज्जनता उपहास बना
जब तब देखो हम छले गए।
अनजान डगर पर निकले थे
थे दिल के हम भोले-भाले
वह चोर लुटेरा ठग निकला
जिस - जिसको समझे रखवाले,
सब करते रहे कंदुक क्रीडा,
मच्छर की भाँति मले गए।
यह सज्जनता और भोलापन
अब अवगुण कहते सब जग में,
पर सोच मुसाफिर दुर्जन तो
मिलते ही रहेंगे पग-पग में,
जब दृढ दुर्जन दुर्जनता पर
तो मैं सज्जनता क्यों छोडूँ,
जानो दो मलो नहीं हाथ कभी
यह सोच, सही है भले गए।