फूलों की कोमल पत्ती को
तोड़ न ले जाए माली,
दिन-रात यहाँ करता रहता
हूँ इसीलिए पहरेदारी|
विश्राम मैं कभी करू न
सहूँ मैं झंझों के झोके,
खड़ा हमेशा रहता हूँ
आहत का क्रंदन उर लेके|
यह पौध हमें क्यों पाल रहा
यह कठिन परीक्षा साल रहा,
पांडव जैसा हो गया गति
लुट गयी हजारों द्रौपदी,
आते जब कोई चुनने को
मैं मौन खड़ा देखा करता,
अपने क्रंदन और पीड़ा को
न उसके कर में हूँ भरता,
अब कौन कृष्ण कहलायेगा
गीता का सार सुनाएगा,
विष मेरे शीर्ष भी उगलेंगे
कोमल पत्ती सुरभित होंगे|
पर एक बात अब भी चुभता
ऐसी सुन्दरता ही क्या,
कर सके जो न अपनी रक्षा
अपनी रक्षा - अपनी रक्षा|