Sunday 30 October 2011

सपने

सपने, केवल सपने नहीं होते
दृश्यमान ही केवल अपने नहीं होते.
सपने ;सोते जगते सपने, 
कभी- कभी हैं खुद ही आते 
किन्तु कभी खुद बुने जाते.
मीठे सपनों का आकर्षण 
बुनता है मन - अन्तःचेतन.
दुर्भाग्य है ये हम सपनों को 
केवल सपने ही कहते हैं 
चंचल मन चाहत करती है
पर  विरह-वेदना सहते हैं .
हम तो कहते हैं सपनों को
बस पाने की चाहत केवल 
है किये नहीं कोशिश ही कभी 
इतना भी नहीं हम में संबल,
और बरबस कहते रहते हैं
सपने तो सपने होते हैं.
सबसे बुरा होता है किन्तु,
कुछ अरमां लिए गुजर जाना,
पर होता है उससे भी  बुरा 
किसी के सपनों का मर जाना.
हमें कोशिश ये करनी है
किसी के सपने न मरे,
जिसे सोते -जगते सब ने  
सजाये अपने पलकों तले.